Thursday, October 28, 2010

तलाश सच्चे दोस्त की

एक मासूम सी लड़की,
एक नदी को डांटती है,
ऐ नदी, तू क्यों बहने लगी-
गांव के ठीक बगल से-
कुछ दिनों पहले।
एक नदी पहले से है-
दूसरी तरफ हमारे गांव के
।तू गहरी, निर्मल है तो क्या-
मैं नहीं खेलूंगी तेरे साथ,
क्यों बांटू अपना सुख-दु:ख मैं-
एक अजनबी के साथ?
तू तो बिल्कुल नयी है,
क्यों हक जताऊं मैं तुझ पर।
तू हट जा मेरे गांव से-
बहुत दूरजहां से आवाज़ न आए-
तेरे कलकल कलकल बहने की।
नहीं बन सकती मैं-
तेरी दोस्त कभी शायद।
बेचारी नदी अपना कसूर खोजती है,
रोती है ये सुनकर-
पर लौटे तो कैसे लौटे?
आंसू कहीं गुम हो जाते हैं,
और बहती रहती है वो-
तलाश में एक सच्चे दोस्त की।