Monday, April 1, 2013

प्यार हवा है...

शीतल और शांत होता है-
हवा का मूल स्वभाव।
वो हमें दुलारती है,
स्नेह से सहलाती है,
कई बार थपकी देकर-
चुपके से सुला देती है।
जब थके हों हम कभी,
बरबस ही गुदगुदाती है-
क्यों यही हवा है।
उसे क़ैद पसंद नहीं,
मंजूर नहीं उसे कि-
कोई रोके रास्ता उसका।
तब उसका स्वभाव-
उग्र और गर्म होता है।
बेबस वो जाता है जो-
कोशिश करता है-
हवा को रोकने की।
क्योंकि वो सिर्फ बहना चाहती है-
अबाध और निर्बाध-
सभी के लिए हर वक़्त।
शायद हर अदृश्य चीज़ को-
बंधन बर्दाश्त नहीं,
उसे मंजूर नहीं जड़ हो जाना।
प्यार भी कुछ ऐसा ही है,
हवाओं की ही तरह-
निर्मल, निश्चल और उन्मुक्त।